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लेखनी कहानी -17-Oct-2022 लोहडी़ (भाग 20



                 शीर्षक :-   लोहडी़
             

                   लोहडी़ का त्योहार 13 जनवरी को मनाया जाता है । यह त्योहार  मुख्य रूप से पंजाब का त्योहार है। 

            परन्तु अब यह पूरे देश में मनाया जाता है। लोहड़ी को सर्दियों के अंत का प्रतीक माना जाता है।
                    पुरानी   मान्यता के अनुसार लोहड़ी का त्योहार शीतकालीन संक्रांति के गुजरने का प्रतीक है। यही कारण है इस खास पर्व को सर्दियों के अंत का प्रतीक भी माना जाता है।  लोहड़ी का ये पर्व मकर संक्रांति से ठीक एक रात पहले धूमधाम से मनाया जाता है। जिसे माघी के नाम से भी जानते हैं।  दरअसल चंद्र सौर विक्रमी कैलेंडर के सौर भाग के अनुसार और आमतौर पर लोहड़ी के पर्व को हमेशा ही 13 जनवरी को घरों में मनाया जाता है।


                आपको बता दें कि लोहड़ी के त्योहार पर दुल्ला भट्टी की कहानी को खास रूप से सुना जाता है. दुल्ला भट्टी मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के वक्त पर पंजाब में रहता था।  मध्य पूर्व के गुलाम बाजार में हिंदू लड़कियों को जबरन बेचने के लिए ले जाने से बचाने के लिए उन्हें आज भी पंजाब में एक नायक के रूप में माना और याद किया जाता है।  कहानी में बताया गया है कि उन्होंने जिनको बचाया था उनमें दो लड़कियां सुंदरी और मुंदरी थीं, जो बाद में धीरे-धीरे पंजाब की लोककथाओं का विषय बन गईं थीं।

                 यह त्योहार    बिना गीत के अधूरा माना जाता है. बच्चे हों या फिर बड़े सभी लोहड़ी त्योहार पर पारंपरिक लोक गीतों को आग के आस पास घूम-घूम कर और घर-घर घूमकर गाते हैं, इन गीतों में “दुल्ला भट्टी” का नाम भी शामिल होता है. घरों में लोहड़ी को मांगने की रिवाज होती है. कहा जाता है कि बिना लोहड़ी के पारंपरिक गीतों के त्योहार अधूरा रहता है।

           सभी लोग नये नये कपडे़ पहनकर तैयार होते है कुछ गाने बजाने व नाचने वाले तरह तरह की रंगीन ड्रैस पहनकर सीर फर पगडी़ बांधकर आते है। इस त्योहार पर रात को समी इकट्ठे होकर एक जगह लकडी़ का अलाव जलाते है और फिर उसमें मूँगफली गुड़ व तिल से बनी रेवडी़ आदि डालते है उसके बाद ढोल नगाडौ़ के साथ नाचते गाते हुए घर घर जाकर लोहडी़ मांगते है।

     सभी पुरुष व स्त्रियां मिलकर ढोल नगाड पर भंगडा करते है तरह तरह के लोक गीत गाये जाते है। सभी लोग मिल जुलकर भगडे़ के गीत गाते है। सभी पुरानी दुश्मनी भुलाकर एक दूसरे को बधाई देते है। इस दिन सभी पुराने बैर भाव को भूल जाते है।

      यह त्योहार आपस की मित्रता की सीख देता है।  

         लोहड़ी के फेमस व  पारंपरिक गीत आज भी गाये जाते है। जिनको गाकर भंगडा़ किया जाता है।

सुंदर मुंदरिये ! …………हाँ
तेरा कौन बेचारा, …………हाँ
दुल्ला भट्टी वाला, ………हाँ
दुल्ले घी व्याही, …………हा़
सेर शक्कर आई, ……………हाँ
कुड़ी दे बाझे पाई, …………हाँ
कुड़ी दा लाल पटारा, ………हाँ

    इह तरह लोहडी़ का त्योहार भी हमारे देश का प्रमुख त्योहार है।

30 Days Festival Competition हेतु रचना

नरेश शर्मा " पचौरी "

05/11/२०२२


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6 Comments

Gunjan Kamal

16-Nov-2022 08:21 AM

शानदार

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Behtarin rachana

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Palak chopra

06-Nov-2022 12:53 AM

Shandar 🌸🙏

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